शिक्षा या व्यापार
आज के युग में शिक्षा का क्या महत्व है। ये तो सभी जानते हैं, आज के इस समाज मे हर कोई उच्च शिक्षा की होड़ में आगे रहना चाहता है। शिक्षा का जितना बोलबाला है उतना ही उसका व्यवसाय आसमानों की बुलंदियों को छू रहा है। अगर हमे अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देनी है तो मोटी रकम देनी ही पड़ती है। कभी कभी तो उच्च शिक्षा के लालच में हम उन तरीको को भी अपना लेते है। जो गलत होते है जैसे कि एडमिशन के लिए दलालों की भी मदद लेते हैं उनको मुँहमाँगी रकम देते हैं।
सरदाना जी की कहानी कुछ ऐसी ही है करीब पाँच साल पहले उनकी शादी हुई थी काम अच्छा था उनका तो पैसों की कोई दिक्कत नही थी एक छोटा सा बंगला था जिसमे सरदाना जी उनकी पत्नी और चार साल का आशीष रहा करते थे। पहले तो आशीष को उन्होंने पी.जी. में जो उनके घर के नज़दीक था उसमें उसका एडमिशन करवा दिया जिससे वो स्कूल में बैठना उठना सीख जाए क्योंकि ऐसे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई भी खेल खेल में ही सिखाई जाती है। सोचा था कि वह स्कूल मे आना जाना सीख जायेन्गा और कुछ ज्ञान भी बढेगा जिससे अगले साल वे उसे स्कूल मे एडमिशन दिला देंगे।
सरदाना जी ने आशीष के लिए एक अच्छा सा स्कूल देखना शुरू कर दिया। आजकल तो साल खत्म होने से पहले ही स्कूल के फार्म भरे जाते हैं जिससे पूरे साल की पढाई सुचारू रूप से हो सके। सो उन्होने भी फॉर्म भर दिया लेकिन परिणाम उनके अनुकूल न देख कर वह सन्न रह गये। सब कुछ तो उन्होने समय से पहले किया लेकिन फिर भी ऐसा नही हुआ... आखिर क्यूं?
सारे अच्छे स्कूलो मे पता कर वह जब थका हारा घर आया तब भी उसके मन इस क्यूं का जवाब पाने की प्रबल इच्छा हो रही थी। लेकिन वह समझ नही पाया ऐसा हुआ क्यूं अभी तो कोई मेरिट का भी चक्कर नही था हां बस प्रिवियस नॉलेज के टेस्ट के बेस पर एड्मिशन हुआ था फिर भी ये रह गया। क्या करू वह सोच मे डूबे कि अभी उनके जेहन में उनके मित्र का ख्याल आया जो एक प्राइवेट स्कूल मे टीचर थे। उनको जैसे डूबते का सहारा... उन्होने बिन देर किये फौरन उसे नम्बर घुमा दिया। उससे बात की तो उन्होने कहा बच्चे का एड्मिशन हो जायेगा इसमे कौन सी बड़ी बात है। बस थोड़ा जेब ढीली करनी पड़ेगी अगर कर ली तो फिर जिसमे चाहो उस स्कूल मे दाखिला हो जाये।
अपने मित्र की बात सुनकर सरदाना जी बिफरते हुए बोले, ‘ये कैसी बाते कर रहे हो, अरे अभी से शिक्षा को व्यापार बना रहे है ये लोग, इतने छोटे से बच्चे के दाखिले के लिये भी जेब ढिली करो अरे फीस भरेंगे न बच्चे की टाइम पर अभी उसे क्या पता है जो ये पैसे मांग रहे है। पैसे तो सिखाने के होते हैं न जिससे बच्चा सीख कर आगे बढ सके लेकिन..
अरे सरदाना ये सोच न जब पहली सीढी सम्हाल कर चढ ली तो बाकी की सीढी भी चढ जायेंगी और अगर पहली ही सीढी मे लड़्खडा गये तो फिर आगे तो भगवान ही मालिक है।
सरदाना सोच मे पड़ गया दोस्त की बात भी सच ही थी। लेकिन इतनी सी उम्र के बच्चे के दाखिले के लिये भी पैसे भरे ये बात उन्हे जंच नही रही थी। उन्होने सोचने का समय लिया और फोन रख दिया। आशीष की मां से भी उन्होने इस बारे मे बात की तो वह बिफरते हुए बोली, “इसमे भी इतना समय ले रहे हो, आजकल तो सब्जी वाला भी रिश्वत का व्यापार करते हुए काम कर रहा है ये तो फिर भी शिक्षा है। सब्जी भी लोगे न तो थोक के भाव मे और हमारे यहाँ गली मुहल्ले मे आने वाले ठेल मे जमीन आसमान का अंतर मिलेगा ये बात तो जानते ही हो न तुम। पहले तो सब्जी के साथ हरे धनिये और मिर्च फ्री मे डलवा लिया करते थे लेकिन आज ऐसा नही है। आज तो थोड़ा और बढाने के लिये दवाब की रिश्वत दो, बातो की रिश्वत दो झिड़क की रिश्वत तो” , वह चुप हो गयी तो सरदाना जी कहने लगे। हां ये बात तो सही कह रही हो शिक्षा संस्थानो की फीस भी तो इतनी महंगी हो गयी विदेशी शिक्षा के नाम पर यहाँ पर लोग तमाम तरह की अवांक्षित सुविधाओ को लाकर औने पौने दाम वसूलते है। आम आदमी तो वहाँ तक का सोच भी नही पाता है। न जाने क्या है ये शिक्षा क्या सिखाते हैं इसमे आगे बढना, रेस मे दौड़ना, नही दौड़ पाओ तो थककर गिर पड़ना। कभी तो समझ ही नही आता है कि ये शिक्षा है या व्यापार जो खूब फल फूल रहा है। आजकल स्कूल कॉलेज गली कूंचे मे कुकुरमुत्ते से जमने लगे हैं। हर मोड़ पर कोई न कोई पब्लिक स्कूल या फिर महाविद्यालय दिख ही जायेगा। सरदाना जी की सारी खुन्नस अब निकलने लगी जिसे उनकी पत्नी ये कह कर शांत कर दी अब जो भी है यही है अगर हमे इस जहाँ की रेस मे दौड़ना है तो उसके नियमो को मानना भी पड़ेगा अब फिर चाहे उसे शिक्षा कह लो या व्यापार।
सरदाना जी भी हामी भरते हुए कल जाकर ही अपने दोस्त से बात करने का कह उसकी बातो मे हांमे हां मिलाने लगते हैं।
Swati chourasia
05-Apr-2022 09:01 PM
Incomplete hai post
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